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लेखनी कहानी -17-Dec-2023

...भीगी पलकें...

पलके भीग जाती है,
बाबुल की याद में,
तन्हाई बड़ी सताती है,
अब मायके के इंतजार में।।

यह कैसे रीत तूने खुदा है बनाई,
बचपन का आंगन छोड़,
होजाती है परियो की विदाई।।

जिम्मेदारी के ढांचे में ढलना ही होता है,
पलके पर आंसू छुपकर ,
हर फर्ज निभाना ही होता है।।

चोट लगती तो ,
मुंह से आहे भी नही निकलती,
मां की ममता बस याद आती।

बाबुल का आंगन देखने,
अब आंखे तरस जाती,
आखिर क्यों होती है,
यह लड़कियों की बिदाई।।

यू तो मां से बात करते थकते नहीं थे,
अब उसीसे भी बस
ठीक है ही कहा जाता है।

भीग जाती है पलके ,
जिमादारियो के बादल में,
बाबुल की याद में।।
........................................
नौशाबा जिलानी सुरिया

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12 Comments

बेहतरीन

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Shnaya

19-Dec-2023 11:40 AM

Nyc

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Naushaba Suriya

31-Dec-2023 11:39 AM

Shukriya 🙏🙏

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Milind salve

18-Dec-2023 07:59 PM

V nice

Reply

Naushaba Suriya

31-Dec-2023 11:39 AM

Shukriya 🙏

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